ये ज़िन्दगी...
अक्सर कभी कभी जब रात के सन्नाटे में बैठ मै खुद में खो सी जाती हूँ तब यही सवाल आता है जहन में... कहाँ हूँ मैं? कौन हूँ मैं? क्या कर रही हूँ? परेशान सी हो जाती हूँ ,अक्सर ऐसा हो जाने के बाद.. ऐसे सवाल जिनके जवाब खोजने में कई जिंदगियाँ निकल जाएँगी उनके पीछे भागना कोई समझदारी की बात नहीं होगी। एक चीज़ सीखी हैं मैंने 20 बीते वर्षों में कि अगर कुछ ढूँढना है तो खुद को ही.'इस दुनिया में स्वयं के अतिरिक्त कुछ और नहीं पाया जा सकता'... पर फिर भी कहाँ हूँ मैं? क्या यहीं होना चाहिए था मुझे? नहीं जानती इन सवालों के जवाब पर फिर भी एक संतोष है...मैं चाहती हूँ समझना खुद को।