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ख़ुशी!

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  कितनी अजीब बात है की वो खुश है, वो कितनी खुश है इसका उसे अंदाजा नहीं, या वो बस एक खुश होने का लिबास पहन कर दुःख को चकमा दे रही है. चाँद वाली रातों में जब सब सो जा ते थे वो अपना सब कुछ लेकर वहाँ चली जाती थी, कह जाती थी वो सब जो एक प्रेमिका अपने प्रेमी से कहा करती है, जैसे एक अबोध बच्चा अपनी माँ की आँखों में देख ना जाने क्या क्या कह जाया करता है. वो सितारों को देखती और उनके होने के कारण के बारे में सोचती. उसे अक्सर ऐसा लगता था की इतिहास में कहीं तो एक कड़ी है जिसके बारे में हमें पता नहीं. वो उस कड़ी को जाने की कोशिश कर रही है, वो खुद को जानने की कोशिश में लगी है की कभी कहीं उसे पता चल जाए की उसके नाम के पीछे जो आत्मा जैसा है वो क्या है. वो सवाल जो बचपन से उसके ज़ेहन में हैं उनका कारण आखिर क्या है! वो जिन्दा अब तक आखिर क्यों है. हमेशा प्यार की बातें करने वाली लड़की अब व्यापार भी समझने लगी है और उसका भरोसा प्यार में और ज्यादा बढ़ गया है. हमेशा दिल टूटने के बाद  अब वो किसी एक मुस्कान का कारण नहीं बनना चाहती, अब उसे दूसरों को मुस्कान बाटनी है, तमाम प्यार जो उसके अन्दर भरा है वो दुनिया क

This Too Shall Pass

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लड़की अजीब है! सबसे घिरे होने के बावजूद अकेली हो जाती है. दुखी होती है अक्सर पर खबर नही पड़ती किसी को. पर एक दुःख छुपा ना पायी वो. प्रेमी का दुःख. उसके साथ उतार चढ़ाव चलते रहते थे मानो साया हो उसका पर वो सब हँसी ख़ुशी बिता देती थी बस अपने प्रेमी के साथ में. रातों को जब तक उसकी आवाज नहीं सुन लेती थी बेचैन रहती थी. प्यार सबसे मजूबत बना कब कमजोरी बन जाता है पता नहीं चलता. पर इतने प्रेम के बावजूद भी जीवन में जितने भी सबसे कठिन मौके आये उसने अकेले सब पार कर किया. दर्द में कराहते जो नाम जुबां पर आता था वो जैसे उसकी आत्मा में दर्ज हो. वो रोती और मिन्नतें करती की वो मर जाए पर कुछ इच्छाओं की तरह इस इच्छा का प्रारब्ध भी अधूरा रहना ही था. लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन की गर बात यहां होती तो 10 साल पहले मर चुकी होती. पर वो जिन्दा है, अभी तक है, और पता नहीं कब तक उसे और रहना भी पड़ेगा. अकेलापन आपको जितना मजबूत बनाता है उतना ही कई बार तोड़ देता है. अपने खुद के बनाये कष्टों से परेशान लड़की "this too shall pass" कहती और निपट लेती सारे  दुखों से अकेले, और कोई रास्ता भी तो नही था. साथ होना और वाकई साथ होन

सुनो..

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सुनो... तुम्हें काफी कुछ बताना है. बताना है तुम्हें की चाँद के पूरे दिख जाने में तुम शिद्दत से याद आते हो. और उसके बाद मन में महसूस होता अकेलापन, अमावस की रात सा हो जाता है चाँद के बिना सियाह! तुम्हारे सो जाने के बाद... तुम्हें बताना है की तुम सोते हुए कितने प्यार से भरे लगते हो. जैसे एक नन्हा सा बच्चा अपनी बड़ी आँखों से निहारता है घटते बढ़ते चाँद को। बताना है यह भी... कि तुम जो यूँ दूर हो जाते हो! यह हुनर तुमने सीखा है चाँद से, या चाँद ने सीखा है तुमसे यूँ बादलों में छिपम छिपाई का खेल. तुम्हे बताना है.. कि रात के करीब ढाई बजे जब या तो सब सोये हैं या मशगूल हैं तन्हाई या इश्क़ में, मैं अपने असाइनमेंट पूरे करने में लगी हूँ. तभी अचानक एक हल्का सा हवा का झोंका चुरा लाया है खुशबु तुम्हारी, हज़ार किलोमीटर दूर मुझ तक। देखो इस तरह हवा का मज़ाक करना मुझे कतई नहीं पसंद। सुनो... सुन रहे हो ना!!!

साथ और याद!

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एक तस्वीर भेजी थी उसने एक खूबसूरत से खरगोश को थामे. मेरी नजर उसकी उँगलियों पर ठिठक गयी. कुछ देर तक देखते रहने के बाद मैंने उसे जवाब दिया ' तुम्हारे हाथ बेहद खूबसूरत हैं'  ये लिखने के बाद उन बीते दिनों का साथ घूमने लगा नजरों के आगे. जब साथ बैठे होते थे हम तब तुम्हारी उंगलियों से कितना खेला करती थी मैं. तुम्हारी कलाई और हाँथ को देखा करती थी जब थामे होते थे मुझे तुम, हलकी सी धूप में तुम्हारे हांथो के बालों का चमकदार शहद सा रंग और तुम्हारी गोरी सी हथेली जेहन में बहुत गहरे बसी है. तुमने जवाब दिया 'ये बेइज्जती का अच्छा तरीका है'  पर वाकई तुमसे खूबसूरत उस वक़्त तुम्हारी उंगलियां लग रही थीं.  उन के बीच थामा वो प्यारा सा खरगोश. तुम्हारे खूबसूरत से हाथों में बसे एहसास मुझे भुला देते हैं सब. तुम्हारी उँगलियों में लिपटी मेरी नजरें तुम्हारे सारे तिल देख कर दर्ज कर लेती थीं. तुम्हारे स्पर्श को याद करते मैं एक ठंडा दिन ऐसे ही गुजार देती हूँ.  कुछ छोटी सी चीजें भी कई बार कितना कुछ याद दिला जाती हैं ना. अब जब तुम अलग होने का सोच रहे हो, बस दोस्त बने रहना च

प्रेम का धागा।

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वो रात जो जाग कर गुजार दी जाती थी भयवश किसी अप्रत्याशित के उस रात के बीच जब जाग गए थे तुम एकबार, और तुमने मुझे भी जागता पाया मेरे आँखों में पसरा डर देखा और जोर से मुझे गले भी लगाया। पर कइयों बार हम खुद से दूर हो जाते हैं। तुम समझाते  टोटके करते बचाने को मुझे  बुरे सपनों से और मैं ढीठ सी हर बार डर ही जाती। फिर अचानक  तुम ले आये  एक धागा मेरा इनको ना मानना और तुम्हारी इन सब पर पूरी श्रद्धा मेरा मना करना  पर तुम मुझे चुप करा बस बांधते रहे कलाई पर उसे मेरी। मैं तुम्हे देख रही थी उस वक़्त पूरे आश्चर्य से कैसे प्रेम में पड़ा लड़का है यह धागे से भला कभी कोई भय जाएगा पर तुम्हारे खातिर मैंने बांधे रखा वो अजमेर का धागा आख़री गाँठ के साथ तुम्हारा उस धागे को चूमना और मेरा तुम्हारे और इश्क़ में पड़ना। आज अचानक एक चींटी घुस गयी है इसमे जैसे पूँछ रही हो ये कैसे अब तक बंधा है मैंने हलके से अलग किया उस चीटीं को  और समझाया ये मामूली नहीं प्यार का धागा है आधी रात को प्रेयस के हांथो बंधा महफूज़ियत का धागा है। ऐसा बोल कर मैं  सोचती हूँ वाक़ई कितनी ताक़त होती है