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Showing posts from August, 2016

प्रेम और हम..

हम अक्सर उम्मीद करते हैं प्रेम की .... एक प्रेम की जो कि हमें पूर्ण कर सके बजाय इसके कि हम स्वयं प्रेम हों और पूर्ण भी । हम बिना चाहे खुद को चाहते हैं कि किसी और के द्वारा बेहद चाहे जाए ... जबकि यह कितना अजीब है, प्रेम सर्वव्यापी है...हर एक में विद्यमान... प्रत्येक रूप में.... पर हम इसके बंधन वाले रुप में ही रहना पसंद कर पाते हैं । मनुष्य ना जाने क्यों पहले बंधनों के पीछे भागता है...  वह चाहता है कि वह उस पर कोई प्यार से बंदिशे लगाए ... और फिर जब कुछ समय बीत जाया करता है वह वापस अपनी दूसरी धारा में चला जाता है ... जहां वह वापस स्वतंत्रता चाहता है ...एक नए सिरे से चाहा जाना चाहता है।  इसका कारण भी मनुष्य के मूल में ही है हम  बदलाव ना स्वीकारने वाली जमात हैं .... हम चाहते हैं कि 3 साल पहले आपमे एक इंसान के लिए जितना प्रेम था या  जैसा प्रेम था ठीक वैसा आने वाले 30 सालों में भी रहे पर यह तो असंभव है न फर्ज कीजिए यदि बारिश जो आपको बेहद पसंद है लगातार वैसी ही 30 वर्षों तक रहे या बर्फ हमेशा गिरती रहे तो क्या हम इसे स्वीकार पाएंगे। क्यों हम बदलाव विरोधी हैं ???क्यों हम वह नहीं चाह

यूँ ही.....

प्यारी लड़कियों       सुनो  यह जरूरी है बेहद कि तुम जानो  तुम जानो कि तुम अनमोल हो बेहद कि अनमोल होना खासियत है तुम्हारी तुम्हें यह जानना चाहिए कि  तुम्हारी इस अनमोलियत और स्त्री होने का पूरा समाज उठाता है फायदा प्रकृति द्वारा दी गई करुणा का स्नेह और वात्सल्य का समाज करता है व्याभिचार बार बार  क्यों ?? क्योंकि तुम अनमोल हो  तुम अनमोल हो यह जानकर ही समाज लगाता है कई बार बोलियां तुम्हारी कई बार बनकर रक्षक तुम्हारा  कई बार प्रेम का चोला ओढ़े  कई बार मोह कर मन तुम्हारा  यह बस खत्म करना चाहते हैं  तुम्हारा आत्मविश्वास  कि तुम अनमोल हो तुम जैसे जैसे जाओगी भीतर इस समाज के  पाओगी बस दोगलापन  पाओगी बस प्रतिस्पर्धा  प्रतिस्पर्धा उन बेतुकी चीजों की  जो की तुम्हे कम आंकती हैं वे चीजें  जो तुम्हें सिखाएंगी  वह झीना आत्मविश्वास  जिसकी कतई जरुरत नही तुम्हें सुनो... इसी बीच कोई शायद प्रेम लाएगा तुम्हारे पास तुम बेहद खुश होओगी झूमोगी चहकोगी तुम जश्न जिंदगी का मनाओगी कि प्रेम पा लिया है तुमने पर जानाँ....  यहाँ सम्हलना जरा  याद रखना कि  प्रेम पहले स्व से करना