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ट्रेन नॉस्टेल्जिया

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इस वक़्त ट्रेन में हूँ वापस भोपाल की ओर. मेरे बगल में एक मुस्लिम फैमिली है. हस्बैंड वाइफ उनके दो प्यारे से खूबसूरत बच्चे. एक बड़ा सा बच्चा है जो को करीब 3 साल का होगा और एक अभी कुछ  महीनों का होगा. जो बड़ा बच्चा है उसका नाम मौज़म है. खूब मस्ती करता हुआ कभी लड़ता कभी दुलार करता अपने अब्बू से. ज्यादा शरारत करने में उसके अब्बू उसे प्यार से बोलते 'बेटू ऐसा मत करो' किन्ही और ख्यालों में मगन मैं ये शब्द सुन कर ही दूर पहुँच जाती इस ट्रेन से कहीं. उस बच्चे के अब्बू का यूँ ' बेटू' बोलना इतना मीठा लगता है की मैं तरस उठती हूँ सुनने को तुम्हारे मुँह से अपना नाम वो नाम जिससे तुमने ही बुलाया 'मेरा बिटवा' 'मेरा बेटू' एक बार जब बीमार थी और तुमने मुझे कहानी सुनाई थी. मैंने उसे रिकॉर्ड कर लिया था.तुम्हारा उस कहानी के दौरान कितने प्यार से 'बेटू' और 'बिटवा' बोलना. उस ऑडियो को मैंने फिर चला रखा है. तुम्हारा खूब प्यार से मुझे कहानी सुनाना और मेरा बीच बीच में तुम्हे रोक कर सवाल पूछना. सब पुराना वक़्त तैर आता है आँखों के सामने. ये लिखते भी मेरा गला काफी भरा

सुनो..

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सुनो... तुम्हें काफी कुछ बताना है. बताना है तुम्हें की चाँद के पूरे दिख जाने में तुम शिद्दत से याद आते हो. और उसके बाद मन में महसूस होता अकेलापन, अमावस की रात सा हो जाता है चाँद के बिना सियाह! तुम्हारे सो जाने के बाद... तुम्हें बताना है की तुम सोते हुए कितने प्यार से भरे लगते हो. जैसे एक नन्हा सा बच्चा अपनी बड़ी आँखों से निहारता है घटते बढ़ते चाँद को। बताना है यह भी... कि तुम जो यूँ दूर हो जाते हो! यह हुनर तुमने सीखा है चाँद से, या चाँद ने सीखा है तुमसे यूँ बादलों में छिपम छिपाई का खेल. तुम्हे बताना है.. कि रात के करीब ढाई बजे जब या तो सब सोये हैं या मशगूल हैं तन्हाई या इश्क़ में, मैं अपने असाइनमेंट पूरे करने में लगी हूँ. तभी अचानक एक हल्का सा हवा का झोंका चुरा लाया है खुशबु तुम्हारी, हज़ार किलोमीटर दूर मुझ तक। देखो इस तरह हवा का मज़ाक करना मुझे कतई नहीं पसंद। सुनो... सुन रहे हो ना!!!