साथ और याद!

एक तस्वीर भेजी थी उसने एक खूबसूरत से खरगोश को थामे. मेरी नजर उसकी उँगलियों पर ठिठक गयी. कुछ देर तक देखते रहने के बाद मैंने उसे जवाब दिया ' तुम्हारे हाथ बेहद खूबसूरत हैं'
 ये लिखने के बाद उन बीते दिनों का साथ घूमने लगा नजरों के आगे. जब साथ बैठे होते थे हम तब तुम्हारी उंगलियों से कितना खेला करती थी मैं. तुम्हारी कलाई और हाँथ को देखा करती थी जब थामे होते थे मुझे तुम, हलकी सी धूप में तुम्हारे हांथो के बालों का चमकदार शहद सा रंग और तुम्हारी गोरी सी हथेली जेहन में बहुत गहरे बसी है.




तुमने जवाब दिया 'ये बेइज्जती का अच्छा तरीका है' 

पर वाकई तुमसे खूबसूरत उस वक़्त तुम्हारी उंगलियां लग रही थीं.  उन के बीच थामा वो प्यारा सा खरगोश.

तुम्हारे खूबसूरत से हाथों में बसे एहसास मुझे भुला देते हैं सब. तुम्हारी उँगलियों में लिपटी मेरी नजरें तुम्हारे सारे तिल देख कर दर्ज कर लेती थीं. तुम्हारे स्पर्श को याद करते मैं एक ठंडा दिन ऐसे ही गुजार देती हूँ. 


कुछ छोटी सी चीजें भी कई बार कितना कुछ याद दिला जाती हैं ना.
अब जब तुम अलग होने का सोच रहे हो, बस दोस्त बने रहना चाहते हो, बताओ ये कैसे मुमकिन है की मैं भूल जाऊं सब. 
अनजान बन जाऊं खुद की बनायी यादों से. 
हर बार हर तस्वीर में तुम्हे थोड़े से ज्यादा देखने की आदत ऐसे बदल तो नहीं जायेगी ना. तुम्हारी आँखों में घुले शहद सा रंग कैसे भूलेगा! जब अल्मोड़ा के रास्ते पर मैंने जी भर कर धूप में घुलते तुम्हारी आँखों के शहद को चखा था.
इश्क़ के बाद दोस्ती नहीं हो पाती मेरी जां. 
मन नहीं मानता की मान ले अब हम वो नहीं जो थे, पर हक़ीक़त का सामना कब तक नहीं करुँगी.
किसी दिन ये मन भी समझ लेगा. और भी दुःख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा.

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