सर्द रातों के एहसास

नवंबर की बढ़ती सर्द वाली एक रात में वो लेटी थी लपेटे खुद में बस एक झीनी सी चादर.
वो चादर जो प्रेमी ने दी थी कभी, अपनी ओढ़ी हुई की अलग हो कर भी जिस्म कहीं से महसूस किये जा सके आपस में.
लड़की की उंगलियों में प्रेमी की उंगलियों के बजाय एक दहकती सी सिगरेट है.  आहिस्ते लिए गए कुछ कश हैं जिनके धुंए से खिड़की के बाहर कई अजीब से आकार बनते हैं. लड़की उन छल्लों में खोज लेती है प्रेमी को, उसके नर्म एहसासों को और छूट गए साथ को भी.



आधी सी जल चुकी सिगरेट लड़की की उंगलियों में दम तोड़
देती है, पर लड़की बेख़बर हैं इस हुए अनहुए से. वो कहीं गुमी सी है, पुरानी तस्वीरों के जालों में शायद जो उसने कुछ मिनट पहले देखे थे. उन तस्वीरों में लड़की का बेझिझक हँसना और प्रेमी का अनुराग कितना साफ़ था. लड़की ठण्ड को जरा और महसूस करते प्रेमी की चादर को और भींच लेती है, बिलकुल वैसे ही जब साथ के दिनों में वो सिमट जाती थी उसकी  छाती में.

कुछ देर पहले बही हुई वो एक जोड़ी आँखें फिर उदास हो जाती हैं. अपने बिस्तर में बैठे, ओढ़े प्रेम की निशानी, यादों में गुम वो चुपचाप कुछ आंसू गिरा देती है. हांथों में बुझी हुई वो सिगरेट एक बार फिर दहकने लगी है. लाइटर से खेलती लड़की अपने चेहरे से जरा दूर कई बार लाइटर जलाती है, मानों उसकी गर्मी प्रेयस का साथ हो.
आधे अधूरे सपनों को पाले वो पलकें नम हैं. उन्हें दुःख नहीं पर उन्हें ख़ुशी भी नहीं.

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