डायरी ऑफ़ अ मेडिको हु वांट्स टू गेट लॉस्ट.. मैं क्या हूँ मुझे नहीं पता!! पर इंसानों की भाषा में मुझे "इंसान" ही कहते हैं.. इंसान क्यूँ कहते हैं ये मुझे नहीं पता, या फिर जैसी हमारी भाषा है वैसे दूसरे प्राणियों की भाषा में हमें क्या कहते होंगे, ये भी मैं नहीं जानती हूँ. बस एक कोशिश है उन ख्यालों को शक्ल देने की. कुछ किस्से.. कुछ कवितायें..कुछ बातें.. कुछ भूले बिसरे पन्ने जिंदगी के.. हवा सी बहती खुद को तलाश रही एक खुशदिल लड़की के.