डायरी ऑफ़ अ मेडिको हु वांट्स टू गेट लॉस्ट..

डायरी ऑफ़ अ मेडिको हु वांट्स टू गेट लॉस्ट..

मैं क्या हूँ मुझे नहीं पता!! पर इंसानों की भाषा में मुझे "इंसान" ही कहते हैं.. इंसान क्यूँ कहते हैं ये मुझे नहीं पता, या फिर जैसी हमारी भाषा है वैसे दूसरे प्राणियों की भाषा में हमें क्या कहते होंगे, ये भी मैं नहीं जानती हूँ.
वैसे बचपन से इस बात को ले कर क्यूरियस थी की हम जो भाषा बोलते हैं उसमे 'क' के बाद 'ख' की क्यूँ आता है. 'ए' के बाद 'बी' ही क्यूँ आता है.
खैर मैं अपनी बात कर रही थी.
 मैं एक इंसान हूँ.. जिसे इंसानी भाषा में इंसान कहते हैं..
 और जैसा एक इंसान को लिए जरुरी है खाना.
 उसी खाने के लिए इंसान को कई जतन करने पड़ते हैं. 
पढना पड़ता है, एक्साम्स देने होते हैं, पास होना होता है, टॉप करना होता है. नौकरी ढूंढनी पड़ती है, नौकरी करनी पड़ती है. तब जा कर सैलरी मिलती है, और उससे खाना मिल पाता है.
 काफी पेचीदा है ना ये सब.


 पर क्या करें ये सब करना पड़ता है. करना पड़ता है क्यूंकि हमसे पहले हमारे माता पिता ने भी यहीं किया है.
और हमें भी यहीं सिखाया गया है की गर कमाओगे नहीं तो खाओगे क्या.
बस इसी कमाने के लिए मैंने भी बहुत से एक्साम्स दिए और फिर आ गयी डॉक्टर बनने की लाइन में. 
डॉक्टरी के आखरी साल के एक्साम्स दे रही हूँ इस बार. इसके बाद और ज्यादा पढना पड़ेगा, ताकि pg के एक्साम्स दे सकूँ और पास हो जाऊं.
 pg करते वक़्त भी इतना पढना पड़ेगा ताकि pg की डिग्री मिल जाए. फिर मिलेगी नौकरी और फिर मैं भी शामिल हो जाउंगी उस भीड़ में जहाँ लोगों का एम सिर्फ पैसे कमा कर खुश होना होता है.
 बस उसी डॉक्टर की जिंदगी के कुछ पन्ने हैं जो यहाँ साझा कर रही हूँ मैं.









Comments

Popular posts from this blog

प्रेम का धागा।

साथ और याद!

यूँ ही.....